(Mahashivratri) महाशिवरात्रि
(Mahashivratri) महाशिवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है और लोग उनके चरणों में जल चढ़ाते हैं। इस दिन लोग निर्जला व्रत भी रखते हैं, जिसका अर्थ होता है कि वे एक दिन भोजन नहीं करते हैं और पानी नहीं पीते हैं। शिवरात्रि के दिन लोग अपने प्रियजनों के साथ मिलकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं कि उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हों।
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि को भगवान शिव के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में माना जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण होते हैं:
- भगवान शिव के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना: महाशिवरात्रि के दिन के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव इस दिन तंडव नृत्य करते हैं जो कि उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- पुराणों में वर्णित महत्व: हिंदू धर्म में शिवरात्रि को पुराणों में बहुत महत्व दिया गया है। इस दिन के बारे में कहा जाता है कि इस दिन को मनाने से भगवान शिव सभी पापों को माफ करते हैं और अपनी कृपा बनाए रखते हैं।
- प्रकृति के अनुसार: शिवरात्रि के दिन को फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है, जब मौसम में ठंड आती है और प्रकृति के लिए नई फसलों का समय शुरू होता है। इसलिए, इस दिन के रूप में भगवान शिव की पूजा करने से प्रकृति की कृपा मिलती है और नई फसल की उपज बढ़ती है।
महाशिवरात्रि पूजन शुभ महूर्त
महाशिवरात्रि इस वर्ष 8 मार्च 2024 को है। इस दिन किसी विशेष मनोकामन पूर्ति के लिए शुभ महुर्त मैं शिव जी की पूजा उपासना करें।
- फाचतुर्दशी तिथि की शुरुआत: 8 मार्च 2024, रात्रि 9:57 बजे
- चतुर्दशी तिथि समाप्ति: 9 मार्च 2024, शाम 6:17 बजे
- पूजा रात्रि के प्रथम प्रहर में: 8 मार्च 2024, शाम 6:25 से 9:28 बजे तक
- पूजा रात्रि के दूसरे प्रहर में: 8 मार्च 2024, रात्रि 9:28 से 9 मार्च 2024, रात्रि 12:31 बजे तक
- पूजा रात्रि के तीसरे प्रहर में: 9 मार्च 2024, रात्रि 12:31 से 3:34 बजे तक
- पूजा रात्रि के चौथे प्रहर में: 9 मार्च 2024, रात्रि 3:34 से 6:37 बजे तक
महाशिवरात्रि पूजन विधि क्या है।
महाशिवरात्रि पूजन विधि कुछ इस प्रकार होती है:
- पूजा के लिए स्थान तैयार करें: शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा के लिए एक विशेष स्थान तैयार करें। इसके लिए आप एक छोटी मंदिर या पूजा स्थल बना सकते हैं या पास के मंदिर मैं जाएँ।
- शिवलिंग पर स्नान कराएं: शिवलिंग को स्नान कराने से पूजा का महत्व बढ़ जाता है। आप शिवलिंग को गंगा जल या दूध से स्नान करा सकते हैं।
- शिवलिंग पर जल चढ़ाएं: शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, धनिया, बिल्व पत्र, चावल आदि चढ़ाएं ।
- शिवलिंग को चारों दिशाओं में दीपक जलाएं: चारों दिशाओं में दीपक जलाना महत्वपूर्ण होता है। इससे पूजा का वातावरण शुभ होता है।
- शिवलिंग का भोग चढ़ाएं: भगवान शिव के लिए भोग चढ़ाएं। इसमें फल, मिठाई, दूध, तिल, घी आदि शामिल हो सकते हैं।
- शिवलिंग की आरती करें: शिवलिंग की आरती करने से पूजा पूर्ण होती है।
महाशिवरात्रि 2024 पूजन सामग्री
- कुश का आसन
- शिवलिंग
- गंगाजल
- आंक के फूल, गुलाब पुष्प
- पंचामृत (घी, गाय का कच्चा दूध, दही, शहद, शक्कर)
- पंच मेवा, पांच मौसमी फल, पांच प्रकार की मिठाई
- शिवा मुठ्ठी (गेहूं, काला तिल, अरहर दाल, अक्षत, मूंग)
- पान के पत्ते, लौंग, इलायची, सुपारी
- भांग, भस्म, केसर, रुद्राक्ष, मौली
- बेलपत्र, धतूरा, शमी पत्र
- सफेद चंदन, गन्ने का रस, हलवा
- अबीर, गुलाल, भोडल, कपूर, इत्र
- मां पार्वती के लिए सुहाग सामग्री
- शिवरात्रि व्रत कथा पुस्तक
- दान – कंबल, दक्षिणा, वस्त्र, अन्न
शिवरात्रि के बारे मै महत्व पूर्ण जानकारी :-
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है?
महाशिवरात्रि हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि की पूजा कैसे की जाती है?
महाशिवरात्रि की पूजा के लिए शिवलिंग का पूजन किया जाता है। पूजा में धूप, दीप, फूल, भोग, फल, धातु के वस्तुएं, जल आदि का उपयोग किया जाता है।
महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखना आवश्यक है?
हां, महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखना आवश्यक है। व्रत रखने से शिव भक्ति के साथ साथ शरीर को भी शुद्धि मिलती है।
महाशिवरात्रि के दिन कौन से भोजन खाएं?
महाशिवरात्रि के दिन सभी व्रत भोजन खा सकते हैं। फल, साबूदाना, कुटू, दूध, दही आदि खा सकते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन क्या नहीं करना चाहिए?
महाशिवरात्रि के दिन शराब, मांस, अंडे, नॉन-वेज खाने से बचना चाहिए।
शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों?
सनातन धर्म के अनुसार जल को देवता माना गया है और पानी के पात्र को कभी भी पैर नहीं लगाया जाता। ठोकर लगा पानी न तो पिया जाता है न ही पिलाया जाता है,यह पाप तुल्य माना जाता है। ऐसे ही जो जल देव प्रतिमा पर चढ़ाया गया हो,उसे लांघा नहीं जाता। शिवलिंग पर नित्य अभिषेक होता है। जिस जल से देवता का अभिषेक हुआ है उसे पाँव नहीं लगे इसलिए प्रणाल के बाद भी चण्डमुख की व्यवस्था मंदिरों में की जाती है। इसलिए भगवान शिव की पूजा के बाद शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बायीं ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर पूरी करनी चाहिए। इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा कहा जाता है।
जलहरी को न लांघें ।
शिवलिंग की जलहरी को भूल कर नहीं लांघना चाहिए। मान्यता के अनुसार ऐसा करना अशुभ माना जाता है। शिवलिंग की जलहरी को ऊर्जा और शक्ति का भंडार माना गया है। यदि परिक्रमा करते हुए इसे लांघा जाए तो मनुष्य को शारीरिक परेशानियों के साथ ही शारीरिक ऊर्जा की हानि का भी सामना करना पड़ता है। शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। इसी वजह से शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का कष्ट उत्पन्न होता है। शिवलिंग की अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही करनी चाहिए।शास्त्रों के अनुसार कई स्थितियों में जलहरी को लांघने का दोष नहीं माना गया है। जैसे तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढंके हुए जलहरी को लांघने से दोष नहीं लगता है।
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