Ichchhaon ka ghada hindi|इच्छाओं का घड़ा
एक छोटे से गाँव में एक किसान अपनी पत्नी के साथ छोटी सी झोपड़ी मे रहता था। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी। उस जमीन की उपज से उसका और उसकी पत्नी का जैसे तैसे गुज़ारा चल जाता था। किसान अपनी ऐसी ज़िन्दगी से खुश नहीं था , उसको भी दसरों की तरह धनी बनने की बहुत इच्छा थी। इसी सोच में वह बहुत दुखी भी रहता था।
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एक दिन किसान अपनी ज़मीन को जोत कर घर वापस लौट रहा था। गर्मियों के दिन थे, वह भूख और प्यास की वजह से चलते चलते बहुत थक चूका था इसी बीच उसको एक पेड़ मिला और उसके नीचे जाकर बैठ गया । उस पेड़ की छांव में उसकी आंख लग गई। कुछ देर बाद जब उसकी आंख खुली तो एहसास हुआ की बहुत समय गुज़र गया है।
जैसे ही हड़बड़ाहट में दो कदम चला ही था की उसे एक आवाज़ सुनायी दी ” क्या तुम्हें धन संपदा चाहिए”? किसान ने आगे पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था। वह डर के मारे कांपने लगा और तेजी से कदम बढ़ाए, लेकिन फिर कुछ दूर चलते ही फिरसे वही ध्वनि सुनायी दी ” क्या तुम धन संपदा चाहिए”?
अबकी बार वो डरा नहीं , उसे लगा शायद ये आवाज़ भगवन की है और धैर्य रखते हुए कहा “हाँ चाहिए”। जवाब मिलते ही उस आवाज़ ने कहा … “अब तुम घर जाओ सात सोने के घड़े तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं”।
किसान लपक कर घर के लिए दौड़ वहां जाकर देखा तो सचमे 7 मटके रखे हुए थे, उसने तूरंत अपनी पत्नी को बुलाकर कहा की, “भगवान ने हमारी सुनली” उत्साह भरे मन से उसने हर एक घड़े के ढक्कन को खोल खोलकर देखने लगा। 6 घड़े सोने के सिकों से भरे हुए थे। लेकिन सातवा घड़ा आधा भरा हुआ था। अब उस किसान दम्पति के पास जिंदगी भर ऐशो आराम करने लायक धन संपदा आगयी थी।
लेकिन फिर भी वो किसान खुश नहीं था, अब उसकी चिंता का विषय था वो आधा खाली घड़ा। वो यही सोच में डूबा रहता था की उस आधे अधूरे घडे को कैसे पूरा भरा जाए? अब उसे ठानली थी की कैसे भी करके सातवे मटके को सोने से भरना ही होगा। अबतो वह दोनों दंपति दिन और रात परिश्रम करने लगे। जो भी कमाते उसे लाकर मटके में डालदेते । गुजरे। उन मटको के धन से जीवन व्यापन करने की बजाये परिश्रम करते करते ना जाने कितने साल गुज़र गए । लेकिन वो सातवा घड़ा भरा नहीं।
एक दिन एक साधु उनकी झोपड़ी मे आये । किसान के माथे पे चिंताओं की रेखाओं को भांपते हुए उन्होन कहा… क्या वो सातवा घड़ा आजभी नहीं भरा? इस प्रश्न को सुनते ही किसान बहुत ही अचंबित हुआ और सोचने लगा की यह सब इनको कैसे पता चला? साधु ने कहा.. आप यही सोच रहे हो ना की : मुझे ये सब कैसे पता चला? सोने से भरे सात मटके मेने ही दिए थे।
वह सातवां मटका इच्छाओं का है। इंसान की इच्छाओं का कोई अंत नहीं। इसीलिए वो मटका अभी तक नहीं भरा । बाकी के सभी मटके भरे हुए थे और उनसे अछि ज़िन्दगी व्यतीत कर सकते थे लेकिन आपने तो लालच में आकर बेवजाह ही इतने साल व्यार्थ करदिए। इतना कहकर वे साधु वहां से चलेगये ।
और उनके जाते ही वो सातो मटके भी गायब होगए। इस तरह उस किसान दम्पति ने अपना समय, परिश्रम और धन भी गवां दिया।