Ahoi Ashtami
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष अहोई अष्टमी व्रत 24 अक्टूबर 2024 (Ahoi Ashtami ) के दिन रखा जाएगा। अहोई अष्टमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन माताएं अपनी सन्तान के कुशल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और तारा दिखने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं।
अहोई माता व्रत की कथा -1 (Ahoi Ashtami Vrat Katha)
शास्त्र के मुताबिक एक प्राचीन कथा के अनुसार, किसी नगर में चंपा नाम की एक महिला रहती थी। उसकी कोई औलाद नहीं थी। वह हमेशा दुखी रहती थी। उसकी इस अवस्था को देखकर एक वृद्ध महिला ने उसे अहोई अष्टमी व्रत करने के लिए कहा। चंपा की एक पड़ोसन भी थी, जिसका नाम चमेली था। उसने भी चंपा को देखकर अहोई अष्टमी का व्रत करना शुरू कर दिया। चंपा ने तो व्रत पूरे भक्ति-भाव से किया। वहीं चमेली ने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए व्रत को किया। दोनों ने अपना व्रत पूरा किया. दोनों के व्रत से प्रसन्न होकर देवी ने चंपा और चमेली को दर्शन दिए।
देवी ने उनसे वरदान मांगने को कहा-चमेली ने फौरन एक पुत्र की मांग कर डाली। जबकि चंपा ने कहा -आप बिना मांगे ही मेरी इच्छा पूरी कर दीजिए। तब अहोई मां ने कहा कि उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं। तुम दोनों वहां जाओ और जो बच्चा तुम्हें अच्छा लगे, उसे अपने घर ले आना। यदि नहीं ला सकीं तो तुम्हें संतान नहीं मिलेगी. चंपा और चमेली दोनों बाग में जाकर बच्चों को पकड़ने लगीं। उनके पकड़ने पर बच्चे रोने लगे। चंपा से उनका रोना देखा नहीं गया। चंपा ने किसी बच्चे को नहीं पकड़ा. पर चमेली ने एक बच्चे को कसकर पकड़ लिया. इसके बाद वहां पर अहोई माता प्रकट हुईं और चंपा की तारीफ करते हुए उसे पुत्रवती होने का वरदान दिया। चमेली को मां बनने के लिए अयोग्य सिद्धि कर दिया। इस तरह अहोई माता की कृपा से चंपा की इच्छा पूरी हो गई।
अहोई माता व्रत की कथा -2 (Ahoi Ashtami Vrat Katha)
एक साहूकार था जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। दिवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में जाकर खदान में मिट्टी खोद रही थी। वहां पर स्याहू का बच्चा मर गया। इससे स्याहू माता बहुत नाराज हो गई थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ में स्याहू का बच्चा मर गया। इससे स्याहू माता बहुत नाराज हो और बोली मैं तेरी कोख बांधूंगी। तब ननद अपना सात भाभियों से बोली की तुम में से कोई अपनी कोख बंधवा लो। सभी भाभियों से अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया। लेकिन छोटी भाभी सोचने लगी की अगर मैंने अपनी कोख नहीं बंधवाई को सासू मां नाराज हो जाएंगी। यह सोचकर ननद के बदले छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली। अब इसके बाद उसको जो बच्चा होता वह सात दिन का होकर मर जाता।
एक दिन पंडित को बुलाकर पूछा मेरी संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है? तब पंडित ने कहा तुम सुरही गाय की सेवा करो। सुरही माता भायली है। वह तेरी कोख खोलवा देता तब तेरा बच्चा जिएगा। अब वह बहुत जल्दी उठकर सुरही गाय के नीचे साफ सफाई कर आती। सुरही गाय ने सोचा रोज उठकर कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूंगी। गौ माता सवेर उठी। क्या देखती हैं कि साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे साफ सफाई कर रही है। गौ माता उससे बोली क्या मांगती है। साहूकार की बहू बोली- स्याहू माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बांध रखी है। सो मेरी कोख खुलवा दो। अब गौ माता समुद्र पार साहूकार की बहू को अपनी भायली के पास लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थी। सो वह दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई।
थोड़ी देर में एक सांप आया। उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी का एक बच्चा था। सांप उसको डसने लगा। तब साहूकार की बहू ने सांप मारकर ढाल के दबा दिया और बच्चे को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वह खून देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी। तब साहूकार की बहू बोली मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि सांप तेरे बच्चे के करीब आया था। मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोले मांग तू क्या मांगती है। वह बोली सात समुद्र पार स्याहू माता रहती हैं हमें तू उसके पास पहुंचा दे। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याहू माता के पास पहुंचा दिया।
स्याहू माता उनको देखकर बोली आ बहन बहुत दिनों में आई है। फिर कहने लगी बहन मेरे सिर में जुएं पड़ गई है। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने उसकी सारी जुएं निकाल दीं। इसपर स्याहू माता प्रसन्न होकर बोली तुने मेरे सिर में बहुत सिलाई घेरी हैं इसलिए तेरे सात बेटे और सात बहू होंगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेचा नहीं सात बेटे कहां से होंगे। स्याहू माता बोली वचन दिया है। वचन से फिरूं तो धोबी की कुंड पर कंकरी होऊं। तब साहूकार की बहू बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद है। यह सुनकर स्याहू माता बोली तुने मुझे ठग लिया। जो तेरे घर पर तुझे सात बहुएं मिलेंगी,। तू जाकर उजमन करियों। सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो। वह लौटकर घर आई तो वहां देखा कि सात बेटे सात बहु बैठे हैं। वह खुश हो गई उसने सात अहोई बनाई सात उजमन किए, और सात कढ़ाई करीं।
शाम के समय जेठानी आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी धोक पूजा कर लों कहीं छोटी बच्चों को याद करके रोने लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा कि जाओ अपनी चाची के घर जाकर देख आउ की तुम्हारी भाभी अभी तक रोई क्यों नहीं। बच्चों ने आकर कहा कि चाची को कुछ मांड रही है खूब उजमण हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी दौड़ी वहां आई और आकर कहने लगीं कि तूने कोख कैसे खुलवाई? वह बोली तुमने तो कोख बंधवाई नहीं थी। सो मैंने कोख बंधवा ली। अब स्याहू माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है।
हे स्याहू माता जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी कोख खोलियो। एक कटोरी में गेहूं के दाने लेकर कहानी सुनें। साथ ही इस दिन मिट्टी में भी हाथ नहीं डालना चाहिए।
अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त –Ahoi Ashtmi shubh muhurat
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त – 24 अक्टूबर की शाम 05:34 से 06:53 तक
तारों को देखने का समय – 24 अक्टूबर को 05:59 PM पर
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय – 12:04 AM (2 अक्टूबर)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ -25 अक्टूबर को 12:59 AM बजे
अष्टमी तिथि समाप्त -25 अक्टूबर को 03:18 AM बजे
अहोई अष्टमी की व्रत विधि (Ahoi Ashtami Vrat Vidhi)
तारों को देखने का समय -24 अक्टूबर को 05:59 PM पर
- माता दुर्गा और अहोई माता का का स्मरण करते हुए धूप-दीप जलाएं।
- पूजा स्थल पर उत्तर-पूर्व दिशा या ईशान कोण में चौकी की स्थापना करें।
- चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं।
- माता अहोई की प्रतिमा स्थापित करें।
- अब गेंहू के दानों से चौकी के मध्य में एक ढेर बना लें, इस पर पानी से भरा एक तांबे का कलश स्थापित करें।
- इसके बाद माता अहोई के चरणों में मोती की माला या फिर चांदी के मोती रखें।
- चौकी पर धूप-दीप जलाएं और अहोई माता जी को पुष्प अर्पित करें।
- फिर माता को रोली, अक्षत, दूध और भात अर्पित करें।
- पूजा स्थान पर 8 पूड़ी, 8 मालपुए एक कटोरी में रखें।
- इसके बाद हाथ में गेहूं के सात दाने और फूल लेकर अहोई माता की कथा पढ़ें।
- कथा पूरी होने पर हाथ में लिए गेहूं के दाने और फूल माता को अर्पित कर दें।
- इसके बाद माता को चढ़ाई गई मोती की माला या चांदी के मोती को एक साफ डोरी या कलावा में पिरोकर गले में पहन लें।
- फिर तारों और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प और भोग के द्वारा इनकी पूजा करें।
- पूजा में रखी गई दक्षिणा अपनी सास या घर की किसी बुजुर्ग महिला को दे दें।
- अंत में जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
अहोई माता की आरती (Ahoi Mata Ki Aarti)
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।
अहोई अष्टमी(Ahoi Ashtami) के व्रत में भूलकर भी न करें ये 5 गलतियां
- खुदाई करने से बचें- अहोई अष्टमी के दिन महिलओं को मिट्टी से जुड़े कार्य करने से बचना चाहिए. इस दिन जमीन या मिट्टी से जुड़े कार्यों में खुरपी का इस्तेमाल ना करें। पौराणिक कथा के अनुसार, मिट्टी की खुदाई के वक्त एक साहूकारनी से सेई के बच्चे की मौत हो गई थी और इसके बाद उसका पूरा परिवार उजड़ गया था। अहोई माता और सेई की पूजा करने के बाद ही उसे संतान की प्राप्ति हुई थी। तभी से ये व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।
- काले रंग के कपड़े- अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने वाली औरतों को काले, नीले या डार्क कलर के कपड़े नहीं पहनने चाहिए. भगवान गणेश का नाम लिए बगैर इसकी पूजा शुरू न करें. कहते हैं कि अहोई पर तारों की छांव में अर्घ्य देने के लिए कांसे के लोटे का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- करवे का इस्तेमाल- अहोई अष्टमी के व्रत में जिस करवे में जल भरकर रखा जाता है, वो वही करवा होना चाहिए जिसका उपयोग आपने करवा चौथ पर किया है। इसके अलावा, पूजा की अन्य सामग्री नई होनी चाहिए. पूजा में मुरझाए फूल या इस्तेमाल हो चुके फल-मिठाई का पुन: प्रयोग न करें।
- तामसिक भोजन- अहोई अष्टमी के व्रत में खान-पान का विशेष ध्यान रखें. व्रत रखने वाली महिलाएं निर्जला उपवास करें और घर के अन्य सदस्यों के लिए प्याज या लहसुन वाला खाना न बनाएं। हो सके तो इस दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
- नुकीली या धारदार चीजें- अहोई अष्टमी के व्रत में धारदार या नुकीली चीजों का बिल्कुल इस्तेमाल न करें. इस दिन चाकू, छुरी, कैंची या सूई जैसी चीजों के उपयोग से बचें. व्रत में इनका इस्तेमाल अशुभ समझा जाता है।