Sach ka Bolbala|सच का बोलबाला
एक नगर में एक राजा था, वह बड़ा ही चतुर और ईमानदार था। उनके समय में प्रजा बहुत ही खुशहाल थी। उस नगर के सभी दरबारी और नागरिक उन्हें बहुत प्यार और सम्मान करते थे। एक बार राजा को विचार आया। अब तक मेरी प्रजा मेरे शासन से सुखी है। मेरे बाद मेरी प्रजा का क्या होगा?मेरी कोई संतान नहीं है! मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। मुझे ही एक ईमानदार और योग्य उत्तराधिकार नियुक्त करना पड़ेगा।
यह सब सोचते हुए उन्होंने अपने सलाहकारों से सलाह मांगी। अंत में यह तय हुआ की योग्य उत्तराधिकारी के लिए सिर्फ अपने परिवार में ही नहीं बल्कि अपने प्रांत के सभी योग्य युवाओं को भी मौका दिया जाए । जीसके लिए एक छोटा सा परीक्षण किया जायेगा। मंत्री ने उनके विचार को प्रोत्साहित किया और प्रांत के सभी युवकों को एक निश्चित दिन पर राजा के दरबार में आने का निमंत्रण दिया। अचानक के बुलावे से प्रांत के युवक हैरान और साथ ही साथ उत्सुक भी थे और वे सभी अनुशासन के साथ राजा के सामने उपस्थित हुए। राजा ने सभी के हाथ में एक एक बीज रखते हुए कहा, इस बीज को अच्छे से पालन पोषण और छह महीने बाद इसी दरबार में हाजिर होना है।
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सभी युवा अपने-अपने घरों में, उस बीज को गमलों में उपजाऊ मिट्टी और खाद के साथ अच्छे से पालन-पोषण करने लगे। वह बीज एक सुंदर फूल के पौधे में विकसित हुआ। प्रत्येक गमले में उगे फूल रोमांचक थे। सभी युवकों को अपनी लगन और मेहनत से उगे अपने पौधे पर पूरा भरोसा था। छह महीने के बाद, राजा की आज्ञानुसार सभी युवक अपने अपने पौधे को राजा के दरबार में बड़ी शान से लाए। सभी रंग बिरंगे पौधे द्दारबार की शोभा बढ़ाते थे। वहां का नजारा ऐसा था,जैसे वो दरबार न होकर स्वर्ग हो। राजा बहुत खुश हुआ और एक-एक करके सभी युवकों को बुलाया और एक एक करके सभी युवकों से सुना कि उनका पौधा कैसे बड़ा हुआ, उनकी दृढ़ता की सराहना की। लेकिन उनमें से कोई भी राजा के इरादे को समझ नहीं पाया।
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आखरी में एक गरीब लड़का अपने हाथों में अपने गमले को लिए एक कोने में सर झुकाए निराशा भरी आंखों से खड़ा हुआ था। उसका नाम दिवाकर था, जब राजा ने उसे अपने पास बुलाया, तो वह डरते हुए राजा के सामने खड़ा हो गया। वहां पे खड़े सभी लोग बिना पौधे के गमले पर हँसते हुए उपहास करने लगे। राजा ने उससे अपने गमले की इस स्थिति का कारण पूछा, युवक ने कहा, ‘क्षमा करें, महाराज, मैंने भी सबकी तरह उपजाऊ मिट्टी और खाद डाली और समय-समय पर उसमें पानी भी डाला। हालांकि, यह अंकुरित नहीं हुआ। अगर मुझे इसके लिए दंड देना चाहते हैं तो मैं तैयार हूं। ऐसे कहते हुए, उसने विनम्रतापूर्वक अपने हाथ जोड़ लिए।
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तुरंत ही राजा सिंहासन से उठे और खुशी-खुशी दिवाकर को गले लगा लिया। उपस्थित सभी लोग, दिवाकर के प्रति राजा के ऐसे रवैये से हैरान हुए फिर, शाही सभा को संबोधित करते हुए, राजा ने कहा; मैंने एक सूक्ष्म युवक को खोजने के लिए ही यह सब परीक्षण किया था जो मेरे बाद इस राज्य प्रशासन की देखभाल कर सके, जिसमें केवल दिवाकर ही सफल हुआ है। मैंने जो बीज आप सबको दिए थे वो बिना उपजाऊ बीज थे। आप सभी ने मेरे दिए गए बीज की जगह अपने मन चाहे बीज से सुंदर फूल उगाए, इसके द्वारा आप सभी ने प्रशंसा और कुछ उपहार पाने की कोशिश सिवाए दिवाकर के। दिवाकर ने दंड की चिंता न करते हुए साहस के साथ सच कहा और अपनी ईमानदारी दिखाई। इसलिए मेरा उत्तराधिकारी दिवाकर को घोषित करता हूं।
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